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Gurudwara Shree Reetha sahib
 


   उत्तराखंड राज्य के चम्पावत तथा नैनीताल जिले की सीमा से लगा रीठासाहिब वर्तमान में देश विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है | लधिया व रतिया नदी के संगम पर बसी सुरमई तथा आकर्षक घाटी दर्शको को निहारने पर विवश कर देती है | प्रशाशनिक उपेक्षा की शिकार यह घाटी प्राकृतिक छटा की एक ऐसी उपहार है जो नगरीय जीवन से ऊबे व्यक्तियों के चित को असीम शांति प्रदान करती है | 


    रीठा साहिब का पूर्व नाम चौडामेहता था , जहाँ गुरु गोरखनाथ का प्रशिद्ध मंदिर एवं सिक्खो की श्राद्धा का बहुत बड़ा गुरुद्वारा स्थित है, जिसे सिक्ख, हिन्दू एकता का प्रतीक एवं सांप्रदायिक सौहार्द का अनुपम उदाहरण भी कहा जा सकता है |

  

मीठे रीठे के बारे में यहाँ मंदिर के पुजारी श्रीनाथ एवं सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव को लेकर अनेक कहानियाँ जुडी हुई हैं | कहा जाता है की गुरु गोरखनाथ मंदिर जहा आज भक्तो की मनोकामना पूर्ण होती है कई वर्षो पूर्व रीठे का एक वृक्ष था | इस रीठे के वृक्ष की दो शाखाए क्रमशः मीठा व कड़वा रीठा प्रदान करती थी | मंदिर के उन मीठे रीठो को लोगो को प्रसाद  के रूप में वितरित करते थे तथा लोग उन्हें धन दौलत देकर विदा करते थे | 

   दूसरी   कहानी  यह है कि दो छोटे पौधे एक साथ सटकर लगे थे, जो मीठे तथा कड़वे होते थे | तीसरी मान्यता यह है की एक ही रीठे के वृक्ष में कलम कर मीठा रीठा लगाया था | वास्तविकता जो भी हो परन्तु वर्तंमान में इस स्थान पर बहुत बड़ा गुरुद्वारा, लंगर तथा सिक्खों की अन्य विशाल इमारतें स्थित हैं | 


तीर्थ स्थल का महत्व 

     सिक्ख पंथियों क मानना है की इस स्थान पर पंद्रहवीं शताब्दी में गुरु नानकदेव अपने प्रमुख शिष्यों बाला व मरदाना के साथ आकर कुछ दिन तक रुके | उनके शिष्यों को भूख  सता रही थीं | शिष्यों ने भोजन का आग्रह किया तो रीठे के वृक्ष के नीचे बैठे गुरु नानकदेव जी ने रीठे की एक डाल छूटे हुए इशारा किया | शिष्यों ने उस डाल के रीठे खा कर अपनी भूख मिटाई | तब से सिक्ख लोग इस स्थान को पवित्र मानाने लगे | वैसे तो प्रतिदिन यह सिक्खो का तांता लगा रहता है, परन्तु वैशाखी पर बहुत विशाल मेला लगता है | जिसमे देश-विदेश से तीर्थ यात्री यहाँ रतिया व लधिया के संगम में सनान कर पुण्य अर्जित करते हैं | 



आस - पास के अन्य धार्मिक व पर्यटक स्थल -

लधिया व रतिया नदी की किनारे शैला मैया का मंदिर श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करता है | पाताल रूद्रेश्वर अपने आप में विश्व प्रसिद्ध है जो रीठा साहिब के 'वारसी' गांव में है | झांकर सैम से आये सैम मंदिर जो सिदौरि (बिनवालगांव) में स्थित है | बिनवालगाँव में रतोट नदी तट पर अनेक छोटी-बड़ी गुफाए हिमलाय की याद ताजा करती हैं |