बाणासुर -
पौराणिक गाथाओ के अनुसार रावण, भस्मासुर तथा बाणासुर का नाम शिवशंकर के परम
भक्तो में गिना जाता हे जिन्होंने शिवशंकर से वर प्राप्त क्र उसका दुरुपयोग
किया और अंत में अपनी दुर्बुद्धि से विनाश को प्राप्त हुए |
बाणासुर राजा बलि का सबसे बड़ा
पुत्र था | वह बाल्यकाल से ही शव का उपासक था | उसकी उदारता तथा
बुद्धिमत्ता के कारण समाज में उसका बड़ा सम्मान था | उसकी प्रतिज्ञा अटल हुआ
करती थी, वीरता में भी उसका कोई प्रतिद्वंधी नहीं था | उसकी भुजाओ में हज़ार
हाथियों का बल था | शिवजी को प्रसन्न कर उसने यह बल अर्जित किया था |
मुक्का मारकर विशाल वृक्षो को तोडना उसका दैनिक खेल था |
शिवभक्त होने के कारण बाणासुर ने
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मध्य हिमालय के शोणितपुर (आधुनिक
सुई-बिशुंग ) के बीच अपनी राजधानी बसाई थी | शोणितपुर के बीच ऊँची चोटी
में स्थित बाणासुर के किले के खंडहर आज भी बाणासुर की प्राचीन
स्मृतियों के प्रतीक है | जिसे देखने के लिए आज भी पर्यटक आते रहते है|
बाणासुर का यह प्राचीन किला उड़द की दाल के गारे पत्थरो की चिनाई से बना हैं
|
बाणासुर गाथा -
शिव दर्शन तथा स्तुति करने के लिए ही बाणासुर ने इस स्थल पर अपना आवास बनाया
था | बाणासुर शक्तिस्वरूपा देवी पार्वती का भी उपासक था| अतः वह नित्य किले
के उत्तर में स्थित झूमदेवी तथा किले के पूरब में स्तिथ देवीधार में भी पूजा
अर्चना करता था
एक बार जब शिवशंकर हिमालय में तांडव
नृत्य कर रहे थे तो बाणासुर ने ऐसे अद्भुत बाजे बजाए की शिवजी अति प्रसन्ना
हो गए और उन्होंने बाणासुर से कहा कि में तुझे हज़ार भुजाओ का बल देता हु ओर
एक झंडा भी तुम्हे विजय प्रतीक के रूप में दे रहा हूँ इसे अपने महल में फेहरा
देंना | जिस दिन तेरे दिल में बाहुबल का अहंकार पैदा हो जाएगा उस दिन यह झंडा
स्वयं ही जाएगा और झंडे के गिरते ही तेरा बाहुबल भी समाप्त हो
जाएगा|
शिवजी से अपार शक्ति और पौरुष पाकर
बाणासुर की भुजाए फड़कने लगी और वह अपने ही समान किसी योद्धा की तलश करने लगा,
जिससे वह मल्ल युद्ध कर सके | परन्तु कोई प्रतिभट न पाकर वह मुक्के और लात
मारकर पहाड़ो तथा शिलाओं को तोड़ने लगा| उसने शिवजी के पास जा कर कहा की या तो
मुझसे लड़ने के लिए कोई वीर भेजिए अन्यथा में अपने ही मल्ल युद्ध करूँगा |
शिवजी ने कहा की तेरा अहंकार दूर करने तुरंत ही योद्धा आएगा |
बाणासुर की एक कन्या थी जिसका नाम था
'ऊषा ' | वह षोड़सी और परम रूपवती बाला थी | बाणासुर के सेनापति का नाम
'कुम्भाड़ ' था उसकी पुत्री 'चित्रलेखा ' महान चित्रकार थी जो राजा तथा
राजकुमारों के रेखाचित्र कल्पना से ही बना लेती थी | उषा था चित्रलेखा
सहेलिया थी और एक ही शयन कक्ष में सोती थी | एक रात गहरी निद्रा में निमग्न
उषा को स्वप्न हुआ की परम रूपवान 'अनिरुद्ध' (कृष्ण पौत्र ) उसके सांथ
सहवास करके उसे आनंदमय कर रहा है | अचानक नीद खुलने पर उषा चिल्ला उठी '
प्राण प्यारे तुम कहा हो ' उसकी सखिया चित्रलेखा आदि भी चौंककर उठी और
उससे कहा की लज्जित होने की कोई बात नहीं हम तुम्हारी अंतरंग सहेली हैं | हमे
बताओ की तुम्हारा वह प्रेमी कोन है, जिसने तुम्हे इतना विह्वल किया है |
सखियों के बार बार अनुरोध करने पर उषा ने अपने प्रेमी का संपूर्ण नख-शिक
वर्णन कर चित्रलेखा को बताया | चित्रलेखा ने सभी देवताओ और राजकुमारों के
रेखाचित्र बनाकर उषा को पहचान कराइ | उषा ने कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के
चित्र को उठा कर चुम लिया और कहा की मेरे सपनो का राजकुमार यही है | इसके
बिना में जीवित नहीं रहूंगी |
चित्रलेखा ने कहा हे सखी मैं तुम्हरी विरह
व्यथा को शांत करने के लिए तुम्हरे चितचोर को त्रिलोक के किसी भी कोने से
ढूंढ़कर लाऊंगी | चित्रलेखा योगिनी विद्या भी जानती थी | वह वह आकाश मार्ग से
रात में ही कृष्ण की द्वारका पहुंची | अपने गणो के सहयोग से सोए हुए राजकुमार
को रातो-रात पलंग सहित शोणितपुर ले आई | अपने चहेते परम सुन्दर
प्राणवल्लभ को पाकर उषा फूले नहीं समाई | दोनों की आंखें चार हुई और दोनों
रति क्रीड़ा में निमग्न हो गए | सप्ताह बीत गए , एक दिन बाणासुर के पहरेदार ने
दोनों की प्रेमवार्ता सुन ली | उन्होंने बाणासुर को इस प्रेम प्रसंग की
जानकारी दी | पहरेदार से यह समाचार जानकर की कन्या के कक्ष में कोई
पुरुष छिपा है, जो कन्या के चरित्र को दूषित क्र रहा है,बाणासुर
के हृदय को ठेश लगी | वह दौड़कर उषा के कक्ष में गया और देखा कि अनिरुद्ध उषा
के पालन में बैठ कर प्रेम वार्ता कर रहा है | जब अनिरुद्ध ने देखा की बाहुबली
बाणासुर दल-बल के साथ उसे घरने आया है तो उसने लोहे का एक भयंकर परिघ
लेकर उसके सैनिको को मरना प्रारंभ कर दिया | सेकड़ो सैनिको के अंग भंग हो गए |
सेकड़ो का विनाश देखकर बाणासुर ने नागपाश से अनिरुद्ध को बांधकर कारगर में डाल
दिया | उषा बिलख बिलख कर रोने लगी|
उधर द्वारिका में अनिरुद्ध की खोज जारी थी |
वर्षात के चार महीने बीत गए परन्तु अनिरुद्ध का कहि पता नहीं चला | द्वारिका
के लोग बहुत शोकाकुल हो गए | एक दिन नारद जी ने द्वारिका जाकर कृष्ण को बताया
की आपका पौत्र तो प्रेम प्रसंग में बाणासुर के कारगर में बंद है | यदुवंशियो
ने दल बल के सांथ शोणितपुर में चढाई कर दी | बाणासुर और कृष्ण की सेनाओ में
भयानक संग्राम छिड़ गया | खून की नदिया बह गयी | यह युद्ध छमनिया चौड़ में हुआ
था | आज भी इस मैदान की मिट्टी रक्तवर्ण की है, जो वीरो के रक्त से सनी है |
इस युद्ध में शिवजी भी अपने गणो सहित बाणासुर को सहयोग दे रहे थे | जब
युद्ध चरमसीमा पर पहुंच गया तो बाणासुर का राजमहल जलने लगा | उसकी प्रजा में
हाहाकार मच गया | तब इस विनाशलीला को रोकने के लिए स्ववं बाणासुर ने शिव तथा
कृष्ण की सम्मुख आत्म समर्पण कर दिया और अपनी पुत्री उषा का विवाह अनिरुद्ध
के साथ कर दिया | विधिवत पुत्री की विदाई कर के वाणासुर शिवस्थान कैलास की ओर
गया तथा कृष्ण अपने पौत्र तथा पुत्रवधु को लेकर द्वारका चले गए |
भौगोलिक स्तिथि -
यह किला जनपद चम्पावत के लोहाघाट नगर से मात्र 5 किलोमीटर की दुरी
पर स्थित है | इस किले से बर्फाच्छादित हिमालय की गगंचुम्भी चोटियां
नंदादेवी, पंचाचूली, त्रिशूल और कैलाश पर्वत एक ही दृष्टि में देखे जा सकते
हैं | वाणासुर का किला चम्पावत के दर्शनीय स्थलों में से एक है | इस किले
के दक्षिण दिशा में मायावती आश्रम की हरी भरी वादियां है, उत्तर में
बर्फाच्छादित गिरिराज हिमालय है | किले के पादप क्षेत्र में
सुई-बिशुंग का समतल खेतिहर क्षेत्र है | मात्र 5 किलोमीटर पूरब में लोहाघाट
नगर है, जो चारो और से देवदार के सदाबहार वनों से घिरा है |
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